नई दिल्ली/पटना: बिहार की विशेष पुनरीक्षण (Special Intensive Revision- SIR) प्रक्रिया को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अहम आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि अब आधार कार्ड को 12वें दस्तावेज के रूप में स्वीकार किया जाए, जिसे मतदाता सूची में नाम जुड़वाने के लिए पहचान प्रमाण के तौर पर पेश किया जा सकता है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ किया कि आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच की सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने मामले पर सुनवाई की। सुनवाई करते हुए कोर्ट ने चुनाव आयोग को आदेश दिया कि वह अपने अधिकारियों को निर्देश जारी करे कि आधार को पहचान पत्र के रूप में स्वीकार करें। अधिकारियों को यह अधिकार होगा कि वे आधार कार्ड की प्रामाणिकता और असली होने की जांच कर सकें।
राजद की ओर से कपिल सिब्बल ने पेश की दलीलें
आरजेडी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में पक्ष रखा। कपिल सिब्बल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के पहले के आदेशों के बावजूद निर्वाचन रजिस्ट्रेशन अधिकारी और बीएलओ आधार को अकेले दस्तावेज के रूप में स्वीकार नहीं कर रहे। सिब्बल ने कोर्ट में उन मतदाताओं के शपथपत्र भी दाखिल किए, जिनके आधार को स्वीकार नहीं किया गया। उन्होंने कहा, ‘आधार सबसे सार्वभौमिक दस्तावेज है। अगर उसे नहीं मानेंगे तो किस तरह की शामिलीकरण प्रक्रिया कर रहे हैं? ये गरीबों को बाहर करना चाहते हैं।’
चुनाव आयोग की ओर से राकेश द्विवेदी ने रखा पक्ष
चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि आधार नागरिकता का सबूत नहीं है, लेकिन पहचान प्रमाण के रूप में इसे स्वीकार किया जाएगा। उन्होंने बताया कि आयोग ने इस बारे में विज्ञापन भी जारी किए हैं।
#SupremeCourt #AadhaarVerdict #BiharNews #VoterID #ElectionCommission #KapilSibal #SCJudgement #IndianElections2025 #DigitalIdentity #CitizenshipDebate #BiharPolitics #AadhaarCard
