बीजापुर : छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में सुरक्षा बलों और प्रशासन को एक बड़ी कामयाबी मिली है। गुरुवार, 2 अक्टूबर 2025 को 103 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर दिया, जिनमें से 49 पर कुल ₹1 करोड़ से अधिक का इनाम घोषित था। यह घटना राज्य में नक्सलवाद के खिलाफ चल रही मुहिम में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो रही है।
📍 कहां और कैसे हुआ सरेंडर
बीजापुर जिले में आयोजित एक विशेष कार्यक्रम के दौरान इन नक्सलियों ने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों और सीआरपीएफ के अधिकारियों के सामने आत्मसमर्पण किया। इनमें 22 महिलाएं भी शामिल थीं। बीजापुर के पुलिस अधीक्षक जितेंद्र कुमार यादव ने बताया कि यह राज्य में एक ही दिन में हुआ सबसे बड़ा आत्मसमर्पण है।
🧠 क्यों छोड़ा नक्सलवाद का रास्ता
सरेंडर करने वाले नक्सलियों ने बताया कि वे माओवादी विचारधारा से मोहभंग और सीपीआई (माओवादी) संगठन में आंतरिक मतभेदों से परेशान थे। इसके अलावा, राज्य सरकार की ओर से चलाए जा रहे “पूनां मार्गेम” पुनर्वास अभियान, “नियाद नेल्लनार” विकास योजना, और नई सरेंडर नीति ने उन्हें मुख्यधारा में लौटने के लिए प्रेरित किया।
👥 कौन-कौन शामिल थे
सरेंडर करने वालों में कई शीर्ष माओवादी नेता भी शामिल हैं:
- लच्छू पुनम उर्फ संतोष (36) – डिविजनल कमेटी सदस्य, ₹8 लाख का इनाम
- गुड्डू फर्सा (30), भीमा सोढ़ी (45), हिडमे फर्सा (26), सुखमती ओयाम (27) – सभी पर ₹8 लाख का इनाम
इसके अलावा:
- 4 नक्सलियों पर ₹5 लाख का इनाम
- 15 पर ₹2 लाख
- 10 पर ₹1 लाख
- 12 पर ₹50,000
- 3 पर ₹10,000 का इनाम था
इनमें से कई RPC (Revolutionary Party Committee) के सदस्य थे, जो संगठन के रणनीतिक निर्णयों में शामिल रहते थे।
💰 सरकार की सहायता और पुनर्वास योजना
सरेंडर करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को ₹50,000 की तत्काल सहायता दी गई है। इसके अलावा उन्हें राज्य सरकार की पुनर्वास नीति के तहत शिक्षा, रोजगार और सुरक्षा की सुविधाएं दी जाएंगी। प्रशासन का कहना है कि यह कदम न केवल नक्सलियों को मुख्यधारा में लाने में मदद करेगा, बल्कि क्षेत्र में शांति और विकास को भी गति देगा।
📈 अब तक की स्थिति
बीजापुर जिले में 2025 में अब तक कुल 410 नक्सलियों ने सरेंडर किया है, जबकि 421 को गिरफ्तार किया गया है। यह आंकड़ा दर्शाता है कि राज्य सरकार की रणनीति और सुरक्षा बलों की कार्रवाई नक्सलवाद को कमजोर करने में सफल हो रही है।
🕊️ निष्कर्ष
छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई में यह सरेंडर एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। इससे न केवल सुरक्षा बलों का मनोबल बढ़ा है, बल्कि यह संकेत भी मिला है कि विकास और संवाद की नीति से हिंसा का रास्ता छोड़ने के लिए नक्सली तैयार हो रहे हैं। आने वाले समय में यदि यही रुख बना रहा, तो छत्तीसगढ़ जल्द ही नक्सलवाद मुक्त राज्य बनने की दिशा में अग्रसर हो सकता है।
Sources: Onmanorama, Economic Times, The Hindu
