नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने जिला जजों की नियुक्ति को लेकर एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाया है। इस फैसले के तहत अब वे न्यायिक अधिकारी, जिनके पास वकील और न्यायिक सेवा का कुल 7 वर्षों का अनुभव है, प्रत्यक्ष भर्ती (Direct Recruitment) के जरिए जिला जज बनने के लिए पात्र माने जाएंगे।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आवेदन की तारीख को ही अनुभव की गणना का आधार माना जाएगा, न कि नियुक्ति की तारीख को। इसके साथ ही, न्यायिक सेवा में कार्यरत उम्मीदवारों के लिए न्यूनतम आयु 35 वर्ष निर्धारित की गई है, जिससे सभी उम्मीदवारों को समान अवसर मिल सके।
इस फैसले के साथ सुप्रीम कोर्ट ने Dheeraj Mor बनाम भारत संघ केस में 2020 में दिए गए पुराने निर्णय को अमान्य कर दिया, जिसमें न्यायिक अधिकारियों को बार कोटे से जिला जज बनने के लिए अयोग्य करार दिया गया था।
📌 मुख्य बिंदु:
-
7 साल का संयुक्त अनुभव (वकील + न्यायिक सेवा) अनिवार्य
-
न्यूनतम आयु 35 वर्ष (इन-सरविस उम्मीदवारों के लिए)
-
निरंतर अनुभव आवश्यक – लंबे गैप वाले अनुभव मान्य नहीं
-
बार के लिए अलग कोटा नहीं – 25% आरक्षण की मांग खारिज
-
राज्य सरकारें व हाईकोर्ट्स तीन महीने के भीतर नियमों में संशोधन करेंगी
यह फैसला मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने सुनाया। पीठ ने यह भी कहा कि न्यायिक सेवा में काम कर रहे अधिकारियों का अनुभव न केवल वकीलों के बराबर है, बल्कि कई मामलों में उससे अधिक प्रभावशाली और व्यावहारिक होता है।
यह फैसला आज से लागू होगा और इससे पूर्व की नियुक्तियों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
