रांची/पटना : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सिवान विधानसभा सीट एक बार फिर राजनीतिक चर्चा का केंद्र बन गई है। यह सीट न केवल अपने ऐतिहासिक और सामाजिक समीकरणों के कारण चर्चित रहती है, बल्कि यहां का राजनीतिक इतिहास भी राज्य की राजनीति की दिशा तय करता आया है। इस बार सिवान में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) और विपक्षी महागठबंधन के बीच कांटे की टक्कर होने जा रही है।
🔹 राजनीतिक पृष्ठभूमि
सिवान जिला कभी राजद के कद्दावर नेता और बाहुबली कहे जाने वाले मोहम्मद शाहाबुद्दीन का गढ़ रहा है। 1990 के दशक से लेकर लंबे समय तक इस इलाके की राजनीति उन्हीं के प्रभाव में रही। शाहाबुद्दीन की मृत्यु के बाद यह सीट उनके परिवार और समर्थकों के लिए साख की लड़ाई बन गई है। 2020 के विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के अवध बिहारी चौधरी ने इस सीट पर जीत दर्ज की थी। उन्होंने भाजपा के प्रत्याशी को करीब 1,973 वोटों के अंतर से हराया था।
इस बार RJD ने फिर से अवध बिहारी चौधरी को मैदान में उतारा है, जबकि NDA की ओर से भाजपा या जदयू में से किसे टिकट मिलेगा, इस पर अब तक अंतिम निर्णय नहीं हुआ है। हालांकि, सियासी हलकों में चर्चा है कि NDA इस बार किसी युवा चेहरे को मैदान में उतारकर मुकाबले को दिलचस्प बनाने की रणनीति पर काम कर रहा है।
🔹 NDA और महागठबंधन की रणनीति
सिवान सीट पर NDA का फोकस विकास और सुशासन के मुद्दे पर है। भाजपा के स्थानीय नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जोड़ी को “विकास की गारंटी” के रूप में पेश कर रहे हैं। पार्टी कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस बार सिवान में जातीय समीकरणों से ऊपर उठकर जनता विकास, सड़क, रोजगार और कानून व्यवस्था जैसे मुद्दों पर वोट करेगी।
वहीं, महागठबंधन का नेतृत्व संभाल रहे तेजस्वी यादव इस सीट को हर हाल में बचाने की कोशिश में हैं। वे सिवान को “समाजिक न्याय” और “युवा शक्ति” के प्रतीक के रूप में पेश कर रहे हैं। तेजस्वी ने हाल ही में कहा कि “सिवान शाहाबुद्दीन का क्षेत्र रहा है, और यहां की जनता ने हमेशा अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई है।” RJD के रणनीतिकार मानते हैं कि मुस्लिम-यादव समीकरण (MY factor) अब भी मजबूत है, और यदि यह समीकरण बरकरार रहा, तो NDA के लिए यह सीट जीतना आसान नहीं होगा। बिहार चुनाव 2025 :
🔹 सामाजिक समीकरण और मतदाता प्रोफाइल
सिवान विधानसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या लगभग 2.8 लाख है। इनमें मुस्लिम और यादव मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। इसके अलावा राजपूत, भूमिहार, और अति पिछड़ा वर्ग के वोट भी इस सीट के नतीजे को प्रभावित करते हैं।
-
मुस्लिम मतदाता: लगभग 22%
-
यादव मतदाता: करीब 18%
-
अति पिछड़ा वर्ग: लगभग 25%
-
सवर्ण समुदाय: लगभग 20%
-
अन्य समुदाय: 15%
यानी कोई भी दल तभी जीत सकता है जब वह बहुजातीय गठजोड़ बनाने में सफल हो।
🔹 स्थानीय मुद्दे
सिवान में बेरोजगारी, अपराध, सड़क और स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति इस बार मुख्य मुद्दे हैं। शहर में कई विकास कार्य अधूरे हैं, जिन पर जनता नाराज है। वहीं, NDA के समर्थक यह तर्क दे रहे हैं कि केंद्र और राज्य की सरकार ने सिवान में शिक्षा और बुनियादी ढांचे पर काफी निवेश किया है।
ग्रामीण इलाकों में बिजली, सिंचाई और युवाओं के रोजगार का मुद्दा अहम है। RJD जहां बेरोजगारी और महंगाई को चुनावी हथियार बना रही है, वहीं भाजपा “डबल इंजन सरकार” के लाभ गिनाने में जुटी है।
🔹 मुकाबले का रुख
चुनाव विश्लेषकों के अनुसार, सिवान का चुनाव पूरी तरह neck-to-neck होने जा रहा है। NDA को उम्मीद है कि अगर अति पिछड़ा वर्ग और सवर्ण वोट उनके पक्ष में एकजुट हुआ, तो वे सीट पलट सकते हैं। वहीं, RJD का भरोसा अपने परंपरागत मुस्लिम-यादव वोट बैंक पर है।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि सिवान विधानसभा सीट बिहार की उन कुछ सीटों में से एक है, जो राज्य की सत्ता का रुख तय करने में अहम भूमिका निभाती है। पिछले तीन चुनावों से यहां का नतीजा प्रदेश की सत्ता परिवर्तन की कहानी से जुड़ा रहा है।
🔹 निष्कर्ष
2025 का चुनाव सिवान में सिर्फ दो दलों का नहीं, बल्कि “विकास बनाम पहचान” की लड़ाई बन चुका है। जहां NDA विकास कार्यों का हवाला देकर वोट मांग रहा है, वहीं महागठबंधन सामाजिक न्याय और स्थानीय मुद्दों को प्रमुखता दे रहा है।
कुल मिलाकर, इस बार सिवान विधानसभा सीट पर NDA और महागठबंधन के बीच कांटे की टक्कर तय मानी जा रही है, और यहां का परिणाम बिहार की सियासी दिशा को प्रभावित कर सकता है।
