नई दिल्ली। देशभर की वक्फ संपत्तियों के अनिवार्य रजिस्ट्रेशन के लिए तय समय-सीमा नज़दीक आने के बीच इस डेडलाइन को बढ़ाने की मांग तेज हो गई है। कांग्रेस सांसद डॉ. मोहम्मद जावेद ने मंगलवार को केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरन रिजिजू को पत्र लिखकर पंजीकरण की अंतिम तिथि बढ़ाने का आग्रह किया है।
डॉ. जावेद ने अपने पत्र में कहा है कि सरकार द्वारा शुरू किए गए UMEED पोर्टल पर वक्फ संपत्तियों का पंजीकरण कई हिस्सों में बेहद धीमी गति से हो पा रहा है। तकनीकी दिक्कतें, सर्वर की समस्या, पुराने दस्तावेजों के डिजिटलीकरण में देरी और ग्रामीण इलाकों में जागरूकता की कमी के चलते बड़ी संख्या में मुतव्वली अभी भी रजिस्ट्रेशन पूरा नहीं कर सके हैं। वक्फ संपत्तियों के रजिस्ट्रेशन की डेडलाइन
क्या है सांसद की मुख्य मांग
सांसद ने कहा कि देश की धार्मिक और सामाजिक धरोहर मानी जाने वाली वक्फ संपत्तियाँ—जैसे मस्जिद, मदरसा, कब्रिस्तान, इमामबाड़ा और दरगाह—अनपंजीकृत रह जाने पर उनका दर्जा संकट में पड़ सकता है। ऐसे में पंजीकरण की समय-सीमा बढ़ाना बेहद आवश्यक है।
उन्होंने सरकार से तीन प्रमुख मांगें की हैं—
1. डेडलाइन कम-से-कम छह महीने बढ़ाई जाए
ताकि सभी मुतव्वली बिना दबाव और तकनीकी दिक्कतों के अपनी संपत्तियों को पंजीकृत करा सकें।
2. UMEED पोर्टल की तकनीकी परेशानियाँ दूर की जाएँ
सांसद ने कहा कि पोर्टल पर सर्वर एरर, फाइल अपलोडिंग, लॉगिन और वेरिफिकेशन में समस्याएँ लगातार सामने आ रही हैं, जिसके चलते रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया अटक रही है।
3. राष्ट्रीय स्तर पर जागरूकता अभियान चलाया जाए
जिले-स्तर पर हेल्प डेस्क, तकनीकी सहायता केंद्र और प्रशिक्षण शिविर आयोजित कर मुतव्वलियों को रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया समझाई जाए।
डॉ. जावेद, जो अल्पसंख्यक मुद्दों पर सक्रिय सांसद हैं, ने पत्र में निम्नलिखित विस्तृत तर्क दिए:
- तकनीकी बाधाएं: UMEED पोर्टल पर अपलोडिंग प्रक्रिया जटिल है। ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी कमजोर है, और डिजिटल साक्षरता की कमी से मुतवल्ली परेशान हैं। कई जगहों पर पोर्टल क्रैश या धीमापन की शिकायतें आई हैं।
- पुराने रिकॉर्ड्स की समस्या: सदियों पुरानी वक्फ संपत्तियां (मस्जिदें, मदरसे, कब्रिस्तान) के दस्तावेज नष्ट हो चुके हैं या उपलब्ध नहीं। ‘वक्फ बाय यूजर’ वाली संपत्तियों को प्रमाणित करना असंभव है, जिससे हजारों संपत्तियां खतरे में हैं।
- मुतवल्ली की दिक्कतें: कई पुराने मुतवल्ली का निधन हो चुका है, और उनके उत्तराधिकारी प्रक्रिया से अनभिज्ञ हैं। राज्य स्तर पर प्रशिक्षण और सहायता की कमी।
- सामाजिक प्रभाव: सख्ती से अल्पसंख्यक समुदाय में असंतोष बढ़ेगा, जो सामाजिक सद्भाव को प्रभावित कर सकता है।
- मांग: कम से कम 6 महीने का अतिरिक्त समय, ताकि वक्फ बोर्ड्स बिना दबाव के प्रक्रिया पूरी कर सकें। उन्होंने AIMPLB और AIMIM की याचिकाओं का भी जिक्र किया। पत्र की कॉपी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है, और यह संसद भवन में सौंपा गया। यह AIMIM और अन्य मुस्लिम संगठनों की व्यापक मुहिम का हिस्सा माना जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट की हालिया टिप्पणी भी चर्चा में
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ संपत्तियों की रजिस्ट्रेशन डेडलाइन बढ़ाने की आम मांग को खारिज कर दिया था। अदालत ने कहा था कि यदि किसी संपत्ति को वास्तविक कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है, तो वह वक्फ ट्रिब्यूनल से राहत मांग सकती है। कोर्ट ने ‘सामूहिक विस्तार’ देने से इनकार किया है, जिसके बाद अब राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर डेडलाइन बढ़ाने की मांग और तेज हो गई है।
क्या है आगे की स्थिति
- सरकार डेडलाइन बढ़ाने पर विचार करती है या नहीं—इस पर सभी वक्फ बोर्डों की नजर है।
- मुतव्वलियों ने भी पत्र, ज्ञापन और जनप्रतिनिधियों के माध्यम से समय-सीमा बढ़ाने की अपील शुरू कर दी है।
- अगर डेडलाइन नहीं बढ़ाई गई, तो हजारों संपत्तियों के सामने पंजीकरण का संकट खड़ा हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला: डेडलाइन पर सख्ती (1 दिसंबर 2025)
सुप्रीम कोर्ट की बेंच (जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह) ने आज डेडलाइन बढ़ाने की याचिकाओं को खारिज कर दिया। मुख्य बिंदु:
- इनकार का आधार: याचिकाकर्ताओं ने पोर्टल की दिक्कतों का प्रमाण नहीं दिया। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि 6 लाख संपत्तियां रजिस्टर्ड हो चुकी हैं, जो प्रक्रिया की सफलता दिखाता है।
- वैकल्पिक राहत: धारा 3B के प्रोविजो के तहत, मुतवल्ली या संस्थाएं वक्फ ट्रिब्यूनल से संपर्क करें। ट्रिब्यूनल को ‘पर्याप्त कारण’ दिखाने पर समय बढ़ाने का अधिकार है। कोर्ट ने कहा, “ट्रिब्यूनल 6 दिसंबर तक आवेदन सुन सकता है।”
- याचिकाकर्ता: ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB), AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, दिल्ली वक्फ बोर्ड चेयरमैन अमानतुल्लाह खान आदि। ओवैसी ने तर्क दिया कि 6 महीने में लाखों संपत्तियों का डेटा जुटाना अव्यावहारिक है।
- अन्य टिप्पणियां: कोर्ट ने ‘वक्फ बाय यूजर’ हटाने को प्रथम दृष्टया मनमाना नहीं माना। सितंबर 2025 के अंतरिम आदेश में कुछ प्रावधान (जैसे 5 साल इस्लाम का अभ्यास) पर रोक लगाई थी, लेकिन पूरा अधिनियम नहीं रोका।
- प्रभाव: कोर्ट के फैसले से सरकार को राहत, लेकिन विपक्ष ने इसे ‘अल्पसंख्यक-विरोधी’ बताया। ओवैसी ने कहा, “यह पारदर्शिता का बहाना है, वक्फ को कमजोर करने की साजिश।”
अन्य प्रतिक्रियाएं और संभावित परिणाम
- सरकार का रुख: मंत्री रिजिजू ने संसद में कहा, “UMEED पोर्टल वक्फ की सुरक्षा के लिए है, न कि हड़पने के लिए।” उन्होंने 24×7 हेल्पलाइन और प्रशिक्षण की घोषणा की। जून 2025 में लॉन्च के समय रिजिजू ने कहा था कि राज्य बोर्ड सख्ती से समयसीमा का पालन करें।
- विपक्ष और संगठनों की आलोचना: AIMIM, AIMPLB ने डेडलाइन को ‘असंभव’ बताया। JD(U) के एक नेता ने बिल पर पार्टी के समर्थन से इस्तीफा दिया। कई राज्यों (जैसे मध्य प्रदेश) में 10% से कम रजिस्ट्रेशन हुआ है, जहां तकनीकी मुद्दे हैं।
- राज्य स्तर की स्थिति: मध्य प्रदेश में 15,000+ संपत्तियों में से केवल 1,200 रजिस्टर्ड। अन्य राज्य जैसे उत्तर प्रदेश और बंगाल में भी देरी।
- संभावित परिणाम: यदि अनुपालन न हुआ, तो हजारों वक्फ संपत्तियां दर्जा खो सकती हैं, जिससे कानूनी विवाद और अतिक्रमण बढ़ेंगे। ट्रिब्यूनल पर बोझ बढ़ेगा। सरकार ने कहा है कि नई संपत्तियां आगे डेटाबेस में जोड़ी जाएंगी।
- व्यापक संदर्भ: अधिनियम भ्रष्टाचार (जैसे कर्नाटक वक्फ स्कैम) और अतिक्रमण रोकने का दावा करता है, लेकिन मुस्लिम संगठन इसे धार्मिक स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25-26) का उल्लंघन मानते हैं। सुप्रीम कोर्ट में संवैधानिक वैधता पर सुनवाई जारी है।
यह मुद्दा वक्फ प्रबंधन सुधारों का हिस्सा है, जो राजनीतिक बहस को गर्माएगा। डेडलाइन अब सिर्फ 5 दिन दूर है, इसलिए अगले दिनों में ट्रिब्यूनल आवेदनों में उछाल आ सकता है। अधिक अपडेट्स के लिए आधिकारिक स्रोत (minorityaffairs.gov.in) देखें।
