रांची, 14 अक्टूबर 2025 — राजधानी रांची में ओला, ऊबर और रैपिडो ड्राइवरों ने सोमवार से अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू कर दी है। इस हड़ताल का नेतृत्व झारखंड प्रदेश टैक्सी एंड ऐप बेस्ड वर्कर्स यूनियन कर रहा है। ड्राइवरों का आरोप है कि ऐप आधारित टैक्सी कंपनियां लगातार मनमानी कर रही हैं, जिससे उनकी आजीविका पर संकट मंडरा रहा है।
हड़ताल का असर: शहर में अफरा-तफरी
हड़ताल के पहले ही दिन रांची में इसका व्यापक असर देखने को मिला। ऐप के जरिए टैक्सी बुक करना बेहद मुश्किल हो गया है। जो कुछ गाड़ियाँ उपलब्ध हैं, उनका किराया तीन गुना तक बढ़ गया है। यात्रियों को ऑफिस, स्कूल और अस्पताल जाने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। कई लोग मजबूरी में ऑटो, बस या निजी वाहनों का सहारा ले रहे हैं।
ड्राइवरों की मुख्य मांगें
हड़ताल कर रहे ड्राइवरों ने कंपनियों के खिलाफ कई गंभीर आरोप लगाए हैं। उनकी प्रमुख मांगें निम्नलिखित हैं:
- कमीशन दरों में कटौती: ड्राइवरों का कहना है कि कंपनियां 25-30% तक कमीशन काटती हैं, जिससे उन्हें बहुत कम बचत होती है।
- डायनामिक प्राइसिंग की समाप्ति: कंपनियां किराए को मनमाने ढंग से घटा-बढ़ा देती हैं, जिससे ड्राइवरों की आमदनी प्रभावित होती है।
- बिना कारण सस्पेंशन का विरोध: कई ड्राइवरों को बिना किसी ठोस वजह के ऐप से सस्पेंड कर दिया जाता है।
- सुरक्षा की गारंटी: ड्राइवरों को रात में काम करने के दौरान सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं होती।
- स्थायी पहचान और लाभ: यूनियन की मांग है कि ड्राइवरों को सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में शामिल किया जाए।
यूनियन के अध्यक्ष ने कहा, “हम तब तक काम पर नहीं लौटेंगे जब तक कंपनियां हमारी मांगों को मान नहीं लेतीं। यह सिर्फ हमारी लड़ाई नहीं है, बल्कि हर उस व्यक्ति की है जो ईमानदारी से काम करता है।”
कंपनियों की प्रतिक्रिया
अब तक ओला, ऊबर और रैपिडो की ओर से कोई औपचारिक बयान नहीं आया है। हालांकि, सूत्रों के अनुसार कंपनियां आंतरिक स्तर पर स्थिति की समीक्षा कर रही हैं और जल्द ही बातचीत की प्रक्रिया शुरू हो सकती है।
प्रशासन की भूमिका
झारखंड सरकार ने इस मामले को गंभीरता से लिया है। परिवहन विभाग के अधिकारियों ने यूनियन प्रतिनिधियों से बातचीत की है और कंपनियों को भी नोटिस भेजा गया है। प्रशासन का कहना है कि आम जनता को हो रही परेशानी को देखते हुए जल्द समाधान निकालना जरूरी है।
यात्रियों की प्रतिक्रिया
हड़ताल से सबसे ज्यादा प्रभावित आम लोग हो रहे हैं। एक यात्री ने बताया, “हर दिन ऑफिस जाने के लिए रैपिडो का इस्तेमाल करता था। आज ऐप पर कोई बाइक उपलब्ध नहीं थी। मजबूरी में ऑटो से जाना पड़ा, वो भी दोगुने किराए पर।” कई यात्रियों ने सोशल मीडिया पर कंपनियों की आलोचना की और ड्राइवरों के समर्थन में पोस्ट किए।
आगे क्या?
यूनियन ने साफ कर दिया है कि जब तक कंपनियां लिखित रूप में उनकी मांगों को स्वीकार नहीं करतीं, हड़ताल जारी रहेगी। आने वाले दिनों में यदि कोई समाधान नहीं निकलता, तो यह हड़ताल और भी व्यापक रूप ले सकती है।
निष्कर्ष: रांची में ऐप आधारित टैक्सी सेवाओं की हड़ताल ने शहर की रफ्तार को धीमा कर दिया है। यह संघर्ष सिर्फ ड्राइवरों की आजीविका का नहीं, बल्कि एक बड़े श्रमिक वर्ग की पहचान और सम्मान की लड़ाई बन चुका है।
