नई दिल्ली – अमेरिका द्वारा एच-1बी वीजा पर सालाना $1 लाख फीस लगाने के प्रस्ताव के बाद भारत की सरकार और टेक्नोलॉजी उद्योग की शीर्ष संस्था नैसकॉम (NASSCOM) मिलकर स्थिति का आकलन कर रही है। यह कदम खासतौर पर उन भारतीय पेशेवरों को प्रभावित कर सकता है, जो अमेरिकी टेक कंपनियों में उच्च-कौशल वाले पदों पर कार्यरत हैं।
सरकारी सूत्रों के मुताबिक, भारत इस मामले पर वाशिंगटन डीसी स्थित दूतावास के जरिए अमेरिकी अधिकारियों से संवाद में है। साथ ही, नैसकॉम जैसी संस्थाओं से भी इस निर्णय के संभावित प्रभाव को लेकर चर्चा की जा रही है।
विशेषज्ञों का मानना है कि वीजा फीस में यह वृद्धि अमेरिकी कंपनियों को भारत में ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (GCCs) को और मजबूत करने के लिए प्रेरित कर सकती है। इससे भारत में एक नई भर्ती लहर देखने को मिल सकती है, क्योंकि अमेरिका में तकनीकी प्रतिभा की कमी को भारत भरने में सक्षम है।
भारत में फिलहाल लगभग 1,700 जीसीसी कार्यरत हैं और 2029-30 तक इनकी संख्या 2,100 से अधिक होने की उम्मीद है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में हुए “सीआईआई जीसीसी बिजनेस समिट” में बताया कि दुनिया के करीब आधे जीसीसी भारत में हैं और यह क्षेत्र इनोवेशन, रिसर्च एंड डेवलपमेंट, और लीडरशिप के नए केंद्र बनते जा रहे हैं।
टेक महिंद्रा के पूर्व सीईओ सी. पी. गुरनानी के अनुसार, भारतीय आईटी कंपनियों ने पिछले कुछ वर्षों में एच-1बी वीजा पर निर्भरता घटा दी है और अब वे लोकल टैलेंट पर अधिक जोर दे रही हैं। उन्होंने कहा कि एच-1बी वीजा के लिए आवेदन में 50% से ज्यादा गिरावट आई है। गुरनानी ने बताया, “हमने पहले ही अपनी रणनीति को ऑटोमेशन, लोकल हायरिंग और बेहतर ग्लोबल डिलीवरी मॉडल की ओर मोड़ा है। इसलिए इस वीजा फीस बदलाव का हमारे व्यवसाय पर सीमित असर होगा।”
