नई दिल्ली | 📅 तारीख: 16 अक्टूबर 2025
सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में एक अभूतपूर्व और निंदनीय घटना को लेकर अब कड़ी कानूनी कार्रवाई शुरू होने जा रही है। 71 वर्षीय वकील राकेश किशोर, जिन्होंने 6 अक्टूबर को भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई की ओर जूता फेंकने की कोशिश की थी, उनके खिलाफ कोर्ट की अवमानना की कार्यवाही शुरू होगी। इस पर सरकार की ओर से औपचारिक मंजूरी भी मिल चुकी है।
⚖️ अटॉर्नी जनरल की अनुमति, कोर्ट में कार्यवाही शुरू
अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि ने कोर्ट की अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 15 के तहत राकेश किशोर पर अवमानना की कार्यवाही चलाने की अनुमति दे दी है। यह कदम सुप्रीम कोर्ट की प्रतिष्ठा और न्यायिक प्रणाली की गरिमा को बनाए रखने के लिए लिया गया है।
इस बात की जानकारी सुप्रीम कोर्ट को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दी। उन्होंने अदालत को बताया कि इस व्यवहार ने न्यायालय की मर्यादा और कार्यवाही की गरिमा को गंभीर रूप से ठेस पहुंचाई है।
जस्टिस सूर्यकांत की प्रतिक्रिया
इस मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा:
“हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पूर्ण समर्थन में हैं, लेकिन हमें यह देखना होगा कि इसका दुरुपयोग न हो।”
उन्होंने यह भी कहा कि यह घटना केवल कानून की नहीं, बल्कि नैतिक और सामाजिक मूल्यों की गिरावट को दर्शाती है।
जस्टिस सूर्यकांत ने आगे कहा:
“हमारा धर्म कभी भी हिंसा को बढ़ावा नहीं देता। अब समस्या यह है कि सोशल मीडिया पर सब कुछ बिकाऊ हो गया है। हर घटना को सनसनी बनाकर पेश किया जा रहा है, जिससे समाज में गलत संदेश जा रहा है।”
📅 घटना कैसे हुई थी?
यह घटना 6 अक्टूबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट के कोर्टरूम नंबर-1 में घटी। वकील राकेश किशोर, जो उस दिन किसी मामले में पेश हुए थे, उन्होंने सुनवाई के दौरान अचानक CJI गवई की ओर जूता फेंकने की कोशिश की, लेकिन सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें तुरंत रोका और कोर्ट से बाहर कर दिया।
इस व्यवहार को न सिर्फ अदालत की अवमानना माना गया, बल्कि अधिवक्ता आचरण संहिता का भी घोर उल्लंघन बताया गया। इस मामले को बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने भी गंभीरता से लिया है और वकील के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू कर दी गई है।
📌 क्यों अहम है यह मामला?
भारत की न्यायपालिका को विश्व की सबसे मजबूत और स्वतंत्र संस्थाओं में गिना जाता है। सुप्रीम कोर्ट जैसी संस्था में इस प्रकार की घटना न केवल शर्मनाक है, बल्कि यह एक खतरनाक उदाहरण भी बन सकती है यदि उस पर सख्त कार्यवाही न की जाए।
इसलिए इस पर अपराध के अनुरूप विधिक दंड दिया जाना जरूरी है ताकि भविष्य में कोई भी व्यक्ति न्यायपालिका की गरिमा के साथ खिलवाड़ करने की हिम्मत न करे।
अब जब अटॉर्नी जनरल ने अनुमति दे दी है, सुप्रीम कोर्ट जल्द ही इस पर औपचारिक सुनवाई शुरू करेगा। यदि वकील राकेश किशोर अवमानना के दोषी पाए जाते हैं, तो उन्हें जेल, जुर्माना या दोनों की सजा मिल सकती है।
इस पूरी घटना ने दिखा दिया कि लोकतंत्र में स्वतंत्रता का अर्थ स्वेच्छाचार नहीं है। कानून की सीमाओं का सम्मान करना और न्यायपालिका की गरिमा बनाए रखना हर नागरिक और खासकर वकीलों की जिम्मेदारी है।
